Amar Singh Rathore Rammat Bikaner

Amar Singh Rathore Rammat Bikaner

बीकानेर । राजा के वेश में तलवार पर हाथ रख अमरसिंह ने मंच पर पहुंचते ही हुंकार भरी तो एक बारगी दर्शकों में सन्नाटा छा गया। ‘मेरे दिल में खार यार, मैं सिंह ज्यों ललकारुंगो, बादशाह की कचेड़ी बीच, उस नीच चुगलखोर को मारूंगो…संवाद के साथ ही नगाड़ों और रम्मत की राग के बाद सहज ही पता चला गया कि अमर सिंह राठौड़ की रम्मत शुरू हो गई। देवी की पूजा और आराधना के बाद शुरू हुई रम्मत में संवादों के का तानाबाना अंत तक चला।

सीमापर फोजी गरजे, गद्दारों की… 
बारहगुवाड़ चौक चौक में रविवार सुबह स्वांग मेहरी रम्मत का मंचन हुआ। उस्ताद बंशी महाराज ओझा के नेतृत्व में ख्याल गीतों के माध्यम से प्रशासन पर व्यंग्य किए गए। ‘समझे थे सिंह दहाड़े ला, वो निकळयां गीदड़ भागणिया के माध्यम से सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया। भगवान गणेश के मंच पर अवतरण के साथ शुरू हुई रम्मत में देश के सैनिकों की हौसला अफजाई करते हुए ‘सीमा पर फौजी गूंजे, गद्दारों री टांग्या धूजे सरीखे संवादों ने दर्शकों को में भी जोश भर दिया।

हर्ष और व्यास जाति के बीच हर्षों के चौक हुआ पानी का खेल

 व्यास जाति की ओर से पीठ पर डोलची से वार, हर्ष जाति की ओर से वार का जवाब भी वार। दोनों की पीठ लाल लेकिन उत्साह, जोश और उमंग में कोई कमी नहीं। स्नेह और सद्भाव की मिसाल बने हर्ष-व्यास जाति का होली के मौके पर होने वाले डोलची पानी के खेल में रविवार को हुआ तो इसे देखने परकोटे के हर हिस्से से लोग पहुंचे। दो घंटे तक चले इस खेल में मोहल्ले से जो भी निकला बगैर भीगे नहीं जा सका। खेल का रोमांच इतना की सभी आयु वर्ग के लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। भले ही हर्ष जाति की ओर से गुलाल उछाल कर खेल की विधिवत समाप्ति की घोषणा की गई हो लेकिन असल प्रेम का प्रतीक यह खेल बिना परिणाम ही समाप्त हुआ। खेल के समाप्त होने के साथ शुरू हो गया एक दूसरे को प्रतीकात्मक रूप से गालियां निकालने का दौर।
इनका रहा नेतृत्व
खेलमें व्यास जाति की ओर से नारायण व्यास, मक्खनलाल व्यास, शिवशंकर व्यास, बल्लभ व्यास, बृजेश्वर लाल व्यास, गोपाल व्यास, हरिनारायण व्यास मन्नासा, गणेश व्यास, उमेश व्यास, भावेश व्यास का नेतृत्व रहा। हर्ष जाति की ओर से शंकर लाल हर्ष, माणकचंद हर्ष, शिवलाल हर्ष, हीरालाल हर्ष, गिरिराज हर्ष, मनमोहन हर्ष, बिट्ठल हर्ष, सुनील हर्ष, श्रीकिसन हर्ष, केपली, ओमप्रकाश, भैरूं आदि ने खेल का नेतृत्व किया।