बीकानेर। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर के महर्षि वशिष्ठ भवन में इतिहास विभाग द्वारा एक दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के मुख्य वक्ता जाधवपुर विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल के प्रो. हिमाद्री बनर्जी ने ‘औपनिवेशिक बंगाल में राजस्थानी इतिहास का प्रतिबिंब’ विषय पर व्याख्यान दिया। विभागाध्यक्ष, प्रो. नारायण सिंह राव ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि बंगाल में बंगाली भाषा में सिसोदिया राजवंश का वैभवपूर्ण इतिहास देखने को मिलता है। प्रो. राव ने कहा कि राजस्थानी संस्कृति का बंगाली इतिहास में विस्तृत विवरण देखा जा सकता है। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. अम्बिका ढाका ने बीजवक्ता प्रो. हिमाद्री का मंच से परिचय देते हुए इनके उल्लेखनीय शोधकार्य का वर्णन किया जिसमें सिख समदुाय एवं उनसे जुड़ी संस्कृति, अर्थव्यवस्था आदि महत्वपूर्ण कार्यों का वर्णन किया।

प्रो. बनर्जी ने अपने उद्बोधन में राजस्थान के मारवाड़ी समुदाय की बंगाल में पीढ़ी दर पीढ़ी देखे गये सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक परिवर्तनों को विस्तार से रखा। उन्होंने कहा कि उन्नीसवीं व बीसवीं शताब्दी में बंगाल में मारवाडिय़ों का व्यापारिक वर्ग के रूप में वर्चस्व था। प्रो. बनर्जी ने बंगाली साहित्य का उदाहरण देते हुए 1960 से पहले की रचनाओं में मारवाड़ी पात्रों को रेखांकित किया।

उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि महाराणा प्रताप की जीवनी परतंत्र भारत में बंगाल में 1902 में प्रकाशित हो गयी थी। साथही साहित्यिक रचनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि कर्नल टोड द्वारा राजस्थान पर लिखी गयी पुस्तक का बंगाली भाषा में चार बार अनुवाद किया जा चुका है। इस प्रकार राजस्थान की राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और भाषायी विशेषताओं का बंगाल की संस्कृति और साहित्य में विस्तारपूर्वक उल्लेख मिलता है जिस पर अनेक शोध के आयाम देखे जा सकते है।

कार्यक्रम में प्रो. राजाराम चोयल, डॉ. धर्मेश हरवानी, डॉ. ज्योति लखानी, डॉ. प्रभुदान चारण, डॉ. लीला कौर, डॉ. प्रगति सोबती, डॉ. संतोष कंवर शेखावत, श्री फौजा सिंह, श्री अमरेश कुमार सिंह, डॉ. सीमा शर्मा, श्री उमेश शर्मा, डॉ. उमा दुबे, श्रीमति सुनिता स्वामी आदि संकाय सदस्य व समस्त छात्रों ने सक्रिय रूप से भागीदारी की। कार्यक्रम के अंत में डॉ. अम्बिका ढाका ने बीज वक्ता व समस्त सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया।