पांच दिवसीय महोत्सव शुरू, अभिषेक, पूजन व भक्तामर महापूजन आज 

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ओम एक्सप्रेस न्यूज बीकानेर। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी की निश्रा में सोमवार को भुजिया बाजार के श्रीचिंतामणि आदिनाथ जिनालय में पांच सौ से दो हजार से अधिक वर्ष प्राचीन 1116 प्रतिमाएं जैन विधि विधान से निकाली गई।  मंदिर में पांच दिवसीय प्राकट्य महोत्सव शुरू हुआ। महोत्सव के तहत सिद्धचक्र महापूजन व भक्ति संगीत संध्या का आयोजन हुआ। आचार्यश्री उनके सहवृति मुनिवृंद तथा साध्वीवृंद ने भी प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन व वंदना की तथा पूजा भागीदारी निभाई चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के अध्यक्ष निर्मल धारिवाल ने बताया कि सोमवार को सिरोही के विधिकारक मनोज कुमार व बाबूमल हरण ने सविधि सिद्धचक्र महापूजन करवाया। पूजन का लाभ श्रीमतीकेसरदेवी  ज्ञानचंद, उत्तम चंद ढढ्ढा परिवार ने लिया। मंगलवार को सुबह सात बजे सुवर्ण, रजत,कांस्य कलश से परमात्मा का अभिषेक, पूजन, गुरुदेव का प्रवचन व विजय मुर्हूत में भक्तामर महापूजन होगा। पूजन का लाभ झंवर लाल,कस्तुरी देवी, मनोजकुमार सेठिया परिवार ने लिया है।

महोत्सव में श्री चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के साथ सकलश्रीसंघ, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ,अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद व महिला परिषद की स्थानीय इकाई का सहयोग तथा पार्श्वचन्द्रगच्छ के मुनि पुण्यरत्नचन्द्र, तपागच्छ के पंन्यास प्रवर पुण्डरीकरत्न विजय तथा साध्वीवृंद का सान्निध्य मिल रहा है। प्रथम दिन बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने दर्शन किए। भारत के विभिन्न इलाकों से श्रद्धालु प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन करने पहुंच रहे है।
सुरक्षा व्यवस्था- मूर्तियों की सुरक्षा के लिए पुलिस के हथियारबंद सिपाही चौबीस घंटें मंदिर में तैनात रहेंगे। मंदिर के द्वार पर मैटल डिटेक्टर की भी व्यवस्था की गई है। मूर्तियों को निकालने व उनके अभिषेक में युवक परिषद व श्रद्धाभावी श्रावक-श्राविकाओं का अनुकरणीय योगदान रहा।
अति प्राचीन है प्रतिमाएं- अति प्राचीन 1116 प्रतिमाएं 500 से 2025 वर्ष पुरानी है। इनमें विक्रम संवत् 1022 से 1602 के मध्य की 1116  धातु प्रतिमाएं हैं। सभी प्रतिमाएं लेखांकित है। यह अनमोल धरोहर आषाढ़ सुदि 11 विक्रम संवत् 1639 के शुभ दिन बीकानेर में लाई गई थी।  चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के अध्यक्ष निर्मल धारिवाल ने बताया कि अकबर के एक सेनापति तुरसमखान ने विक्रम संवत् 1633 में राजस्थान के सिरोही क्षेत्र पर आक्रमण किया एवं उस क्षेत्र पर, अपना आधिपत्य कायम कर लियां इसी दौरान उन्हें कहीं से सूचना मिली कि जैन धातु प्रतिमाओं में स्वर्णधातु की बहुलता है और इसी  कारण ये चमकती है। उस धन-पिपासु ने तुरन्त  अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इस क्षेत्रा के मंदिरों में स्थापित धातु मूर्तियों को उठा लिया जाए।

सारी प्रतिमाएं संग्रहित कर ली गई। प्रतिमाओं को गलाने के लिए फतेहपुर सीकरी ले जाया गया।  इस घटना की सूचना जब बीकानेर के धर्मपरायण दीवान कर्मचंदजी बच्छावत को मिली तो उनका हृदय विचलित हो उठा कि इन प्रतिमाओं को किस प्रकार गलने से बचाया जाए। बहुत सोच विचार कर उन्होंने बादशाह अकबर को फतेहपुर सीकरी में बहुमूल्य उपहार भेंट किए, जिससे बादशाह प्रसन्न हो गए। बच्छावत ने 1050 प्रतिमाओं को नहीं गलाने व उसके बदले में उन्हें सौंपने तथा बदले में सोना देने का आग्रह किया। बादशाह ने प्रतिमाएं कर्मचंद बच्छावत को को भेंट करनेके आदेश दे दिए। उस समय बीकानेर के महाराजा रायिंसह वहीं थे। बादशाह ने महाराजा रायसिंह को बीकानेर तक प्रतिमाओ को सुरक्षित भिजवाने का जिम्मा सौंपा। महाराजा ने जिम्मा बखूबी निभाया । बीकानेर में विक्रम संवत् 1639 को पहुंचने पर जैन समाज के बड़ी संख्या में श्रावक राजमहल गए तथा धूमधाम से प्रतिमाओं को चिंतामणि जैन मंदिर तक लाया गया। मूर्तियों की सुरक्षा के लिए एक भूगर्भ भंडार बनवाया गया इसमें सुरक्षित रखवा दिया गया। तब से अब तक विशिष्ट अवसरों पर ही इन्हें निकाला जाता है, पूजा व अभिषेक के बाद पुन: भू-गर्भ भंडार में रख दिया जाता है।  धारीवाल ने अतीत का स्मरण करते हुए बताया कि विक्रम संवत् 1987 मेंं जैनाचार्य कृपाचद्रसूरिजी के बीकानेर चातुर्मास में कार्तिक सुदी 3 को, विक्रम संवत् 1995 में हरि सागर सूरिश्वरजी के बीकानेर आगमन पर भादवा माह में, पुन: संवत विक्रम संवत् 2000 में मणिसागर सूरिजी के आगमन पर निकाली गई।  संवत् 2000 के पश्चात संवत् 2019 में व 2033 में आखिरी बार निकाली गई। पुन: विक्रम संवत् 2066 यानि वर्ष 2009 में  अब 27 नवम्बर 2017 विक्रम संवत् 2074 में गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी के सान्निध्य में निकाला जा रहा है। धारीवाल ने बताया कि इतिहास का अध्ययन करने वाले शोधार्थियों के लिए लेखांकित प्रतिमाएं बहुत महत्वपूर्ण है  । लेखों का अध्ययन करने से उस समय के आचार्यों, उनके गच्छों, श्रावकों के गोत्रों आदि की जानकारी प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि कालक्रम की दृष्टि से 11 वीं सदी की 9, बारहवीं शताब्दी की 10, तेरहवीं शताब्दी की 63, चौदहवीं शताब्दी की 259, पन्द्रहवीं शताब्दी की 436, सोलहवीं शताब्दी की 339 सहित कुल 1116 प्रतिमाएं है। अलग-अलग आकृतियों की इस कलाकृतियों में एक तीर्थंकर बैठी मुद्रामें, दो का उउसग्ग मुद्रा मेंÓÓ में है ऐसी प्रतिमाओं का निर्माण पिछले 500 वर्ष पूर्व बंद हो चुका है। इन लेखों से उस क्षेत्र के लगभग 55 स्थानों के नामों की जानकारी मिलती है,जिनमें से अब कई नाम परिवर्तित हो चुके है।
प्रन्यास की ओर से संपर्क- चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के उपाध्यक्ष नरपत सेठिया व सचिव चन्द्र सिंह पारख ने सोमवार को पुलिस महानिरीक्षक विपिन पांडेय तथा पुलिस अधीक्षक सहित अनेक प्रशासनिक व पुलिस के अधिकारियों ने मुलाकात की तथा प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन का लाभ लेने का आग्रह किया।