राजाराम स्वर्णकार

बीकानेर। जीवन में भय, संकट और विनाश पर विजय पाने एवं परम आनन्द की प्राप्ति के लिए दो चीजें जरूरी है, पहली है मां सरस्वती की असीम कृपा और दूसरी है स्वयं की मौन अंत:स्थिति जो श्रद्धा, आस्था एवं समर्पण पार आधारित होती है ।

डॉ.रामेश्वर आनन्द सोनी को ये दोनों चीजें जन्म से ही वरदान स्वरूप प्राप्त हुयी । मां सरस्वती के प्रति अंतर्मुखी श्रद्धा और आस्था के साथ अंत:स्थिति निष्ठा और समर्पण भाव से गठित है, आस्थाओं की पगडंडी पर चलते हुए अपनी संकल्प शक्ति के आधार पर डॉ.आनन्द ने संगीत के क्षेत्र में काफी सफलता प्राप्त की थी ।

स्व.श्रीमती हीरा देवी की कोख से जन्मे पिता सागरमलजी सोनी के लाड-प्यार से पले बढे और अपनी दादीजी श्रीमती जेठी देवी से बचपन में ही संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाले संगीतज्ञ डॉ.रामेश्वर आनन्द सोनी का जन्म 21 अप्रेल 1930 को धर्म नगरी बीकानेर में हुआ । घर में दादीजी हरजस (भजन) गाया करती थी । इन्ही से प्रेरणा लेकर आप भी साथ में गुन गुनाया करते थे ।

दिन में पुश्तैनी काम (सोने पर काच के रंगों से चित्रकारी) और रात में भारतीय विध्यामन्दिर में पढाई । आधी रात बाद संगीत का रियाज । यह कार्य शैली थी डॉ.आनन्द की । आनन्द ने दसवीं, बीए, एमए, (एम.म्यूज) प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया । स्वयंपाठी छात्र के रूप में गान्धर्व महाविध्यालय (गुजरात) से कंठ संगीत में पी.एच.डी करके डॉक्टर ऑफ म्यूजिक की उपाधि से सुशोभित हुए ।

डॉ.रामेश्वर आनन्द अपना पुश्तैनी सोने पर मीनाकारी का काम करने कोलकाता चले गये । वहां आपकी मुलाकात श्रीमती बांसुरी-ऑपरेश लाहिडी (सुप्रसिद्ध संगीतकार बप्पी लाहिडी के मात-पिता) से हुई । जब संगीत की बात चली और रामेश्वरजी की संगीत के प्रति रुचि को देखते हुए ऑपरेश लाहिडी ने संगीत की बारीकी (लयकारी) के टिप्स दिए ।

रामेश्वरजी की आवाज में मिठास थी उसके कारण लाहिडीजी ने कहा तुम आलाप लेते हो तो मुझे आनन्द की प्राप्ति होती है अत: आज से मैं तुम्हारे को आनन्द नाम से बुलाउंगा । डॉ.रामेश्वरानन्दजी ने बताया कि उस समय बप्पी लाहिडी मात्र तीन वर्ष छ: माह के थे और कोलकाता के राज भवन में एक स्टेज कार्यक्रम में बप्पी ने करीबन एक घंटे तबला बजाया । इससे खुश होकर राजकपूर ने इनको गोद में उठा लिया और स्टेज पर नाचने लगे । डॉ.रामेश्वर आनन्द ने न्यू थियेटर्स कोलकाता में बनी फिल्म अमर सहगल में अभिनय किया और गीत भी गाये ।

वर्ष 1958 में कोलकाता छोड आप बीकानेर आ गए । कुछ समय यहां सोने पर मीनाकारी का कार्य किया । और मैट्रिक की परीक्षा देकर जयपुर चले गये । वहां सुप्रसिद्ध स्वर्ण व्यवसायी श्री राजमल सुराणा का कार्य करना शुरु किया । आपकी पकड संगीत पर जैसी थी वैसी ही पकड अपने हाथ के हुनर पर भी थी । राजमल सुराणा ने रामेश्वरजी द्वारा सुन्दर बारीक मन मोहक किए कार्य की प्रशंसा की । आपको विश्वास दिलाया कि काम में किसी प्रकार की कमी आने नहीं दी जाएगी । आपको भरपूर काम मिलेगा । आप केवल मेरा ही काम करना । लेकिन कलाकार को बन्धन पसन्द नहीं आया और वे बीकानेर आ गए ।

मेडिकल कॉलेज बीकानेर से रामेश्वरजी ने राजकीय सेवा शुरु की । सुरीली आवाज में मन मोहित करने वाले गायन के कारण आपका स्थानांतरण शिक्षा विभाग में संगीत अध्यापक के रुप में कर दिया गया । आपने इस क्षेत्र में कई आयाम स्थापित किए, कई शिष्य तैयार किए जो अपने नाम के साथ देश-विदेश में आपका नाम भी रोशन कर रहे हैं ।

संगीत गुरु के रुप में श्री ऑपरेश लाहिडी कोलकाता, डॉ.जयचन्द्र शर्मा और रामकिशनजी पांडे बीकानेर को आप गुरु के रुप में सम्मान देते थे । 1956 में एच.एम.वी ने आपके गाये भजनों की रिकॉर्ड जारी की । आप द्वारा गाये भजनों की कई सारी ऑडियो कैसेट निकली हुई है जिनमें विशेष है मीरा-माधुरी, अनुगूंज (साहित्यिक गीत) राम कृपा से, जागो भैरव लाडला, जयश्री लक्ष्मीनाथ, प्रेम का मारग बांका रे (बाणियों पर आधारित) जय बम-बम भोले, निर्बल के बल राम, मीरा के गिरधारी, राम रुणीचे वाळा ।

आपका शास्त्रीय संगीत, गीत, गजल, लोक भजन आदि सभी में समान अधिकार था । आप द्वारा गाये मुख्य गीत, भजन राजस्थानी वीरों को जो प्राणों से भी प्यारा है देश के दुलारों का ये आजादी का नारा है हर हर हर महादेव ( सन 1962 चीन युद्ध के समय की रचना) नेताजी की अमर कहानी, बंग देश का शेर चला, सती साम्भवी गौरजा मां भवानी, कण-कण में है झांकी भगवान की, कैसे तू ने प्रभु ये कायनात बान्धी कायनात बान्धी एक दिन के पीछे एक रात बान्धी, बिन्दूजी की गाजलें- मिला है मुझको किस्मत से खयाले रिन्द मस्ताना , है प्रेम जगत में सार, दुनिया के रखवाले, बदा अनोखा मेरे नन्द का लाला निकला, मैया मोरी कामरी कौन लई आदि ।

आप द्वारा प्रस्तुत शास्त्रीय व सुगम संगीत कार्यक्रम में श्रोता रात भर सुनने को बेताब रहते हुए दुनिया से अलग स्वर समुन्द्र की अथाह गहराई में गोता लगाते हुए आनन्द रुपी मोती प्राप्त करते हैं । आपकी चार ऑडियो कैसिट का एक साथ लोकार्पण कार्यक्रम आनन्द निकेतन में हुआ तव्ब स्वामी सोमगिरिजी महाराज ने अपने उद्बोधन में खा- भारतीय संस्कृति संगीतमयी है । छुपा हुआ बहुत सा अव्यक्त है जो डॉ.रामेश्वर आनन्द ने संगीत के माध्यम से व्यक्त किया है । ज्ञान की परम्परा गुरु शिष्य परम्परा है जिसे इन्होंने अपने गुरुओं से ग्रहण किया है । संतों की वाणियों को भी बडे सुन्दर तरीके से रामेश्वरानन्दजी प्रस्तुत करते थे ।

स्व. जसकरणजी गोस्वामी (सुप्रसिद्ध सितार वादक एवं पूर्व केन्द्र निदेशक आकाशवानी, बीकानेर) ने कहा मीरा, सूर कबीर रसखान तुलसी, ब्रह्मानन्द के पदों के अनुरुप धुनें बनाकर डॉ.रामेश्वर आनन्द द्वारा सहज अभिव्यक्ति देना बहुत बडी बात है । आकाशवाणी से संगीत पर आपकी ज्ञानवर्धक वार्ताएं कई बार प्रसारित हुई है । म्यूजिकोलॉजिस्ट के रुप में आप आकाशवानी बीकानेर एवं जोधपुर में ऑडिशन कमेटी के सदस्य रहे थे । देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में संगीत से सम्बन्धित आलेख प्रकाशित हुए हैं । संगीत से सम्बन्धित छपे आपके इन आलेखों से युवा वर्ग ने काफी कुछ सीखा । मान्द समारोह में रामेश्वरानन्दजी ने माड राग पर पत्र वाचन किया जो काफी सराहा गया । राज्स्थान विश्वविध्यालय जयपुर से संगीत में पीएचडी करने वाले कई सारे शोधार्थी आपको अपना आदर्श मानते हैं ।

आप द्वारा लिखित पुस्तकें हैं 1- अतीत से वर्तमान तक ब्राह्मण स्वर्णकार समाज 2- एक विरासत (राजस्थान की लोक सांगीतिक सम्पदा, लोक नाट्य हेडाऊ मैहरी रम्मत शोध कार्य स्वरांकन) 3- राजस्थानी राग-रस-रंग । डॉ.रामेश्वरानन्दजी को कई सारे पुरस्कार एवं सम्मान-पत्र दिये गए हैं इनमें प्रमुख है संस्कार भारती बीकानेर द्वारा गोपाल स्वामी पुरस्कार, श्री ब्राह्मण स्वर्णकार समाज अहमदाबाद द्वारा “समाज रत्न” पुरस्कार, जिला प्रशासन बीकानेर द्वारा पद्मश्री अल्लाहजिलाई बाई सम्मान-पुरस्कार, राव बीकाजी संस्थान एवं महाराजा करणीसिंह जयंती पर भी आपके कार्यों का सम्मान किया गया था । ब्राह्मण स्वर्णकार बहुसाध्य सक्रिय संस्थान बीकानेर द्वारा संगीत शिरोमणि पुरस्कार, श्री ब्राह्मण स्वर्णकार समाज सेवा संस्थान द्वारा रु. 11000/ नकद, श्रीफल, शॉल, साफा, रजत जडित मणि मुकुट पहनाकर ‘संगीत रत्नÓ सम्मान अर्पित किया गया।

वैसे आपका प्रत्येक गीत, भजन सीख देता ही है, परंतु अजपूर्ण वाणी में जब आप “हर हर हर महादेव, बंग देश का शेर चला को सुनाते थे तो सुनने वालॉं के रोंगेट खडे हो जाते थे । संगीत में बीकानेर वासी आप पर गर्व करते नहीं थकते थे । यह गायकी का हुनर आपने अपने बडे पुत्र ज्ञानेश्वर सोनी को सिखाया वे भी आपका नाम रोशन कर रहे हैं । कहते हैं ना कि मूळ से ब्याज प्यारा होता है तो इस संगीत के हुनर में आपका पौत्र गौरीशंकर सोनी भी आपके बताए मार्ग का अक्षरश: पालन कर नए आयाम स्थापित कर रहे हैं । 04 जनवरी 2017 का वह दिन भुलाए नहीं भूल सकते क्योंकि काल के क्रूर हाथों आअप्ने यह नश्वर देह त्याग दी । दूसरी पुण्यतिथि पर बीकानेर का संगीत जगत आपको श्रद्धामय स्मरण करता रहेगा ।

शिव-निवास, बर्तन बाजार, बीकानेर