Kalicharan Saraf
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नियमों का उल्लंघन करने वाले छात्र नेताओं पर सख्त रुख अपनाने के निर्देश

जयपुर। उच्च शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ ने कॉलेज प्राचार्यों को छात्रसंघ चुनावों में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का उल्लंघन करने वाले छात्र नेताओं पर सख्त रुख अपनाने के निर्देश दिए हैं। सराफ ने दो टूक कहा है कि लिंगदोह कमिटी सिफारिशों का मखौल उड़ाने वाले छात्र नेताओं पर एफआईआर दर्ज़ हो और ज़रुरत पड़ने पर नामांकन तक रद्द हो। सराफ जयपुर के ओटीएस सभागार में आयोजित हुए प्राचार्यों के सम्मलेन में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि चुनावों के दौरान अक्सर देखने में आता है कि यूनिवर्सिटी और कॉलेज कैम्पस के अलावा पूरा शहर बदरंग हो जाता है। जगह-जगह छात्र नेताओं के प्रचार-प्रसार करते पोस्टर्स-बैनर्स लगे रहते हैं। इस तरह के कृत्य को छात्र नेता लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को ताक पर रख कर अंजाम देते हैं।  ऐसे में प्राचार्यों को ऐसे छात्र नेताओं के खिलाफ सख्ती दिखाई जाने की ज़रुरत है।

किसी भी दल से हो, कार्यवाई करो

छात्रसंघ चुनावों के दौरान लिंगदोह कमेटी सिफारिशों की पालना कराने के संबंध में प्राचार्यों को हिदायत देते हुए सराफ ने कहा कि छात्र नेता किसी भी राजनितिक दल से जुड़ा हो या कितना ही बड़ा क्यों न हो उसके खिलाफ कार्यवाई होनी चाहिए। दोषी पाए जाने वाले छात्र नेता के खिलाफ पहले पुलिस में मुकदमा दर्ज़ किया जाए और ज़रुरत पड़े तो उसका नामांकन रद्द किये जाने जैसा कदम भी निसंकोच उठा लिया जाए।

सिंघल की नियुक्ति राजनितिक नहीं

राजस्थान विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति डॉक्टर जेपी सिंघल की नियुक्ति पर उठ रहे विवाद और सवालों को सराफ ने फ़िज़ूल का बताया।  उन्होंने कहा ये आरोप कांग्रेस की ओर से उठाये जा रहे हैं। जिनका कोई आधार नहीं है। डॉक्टर जेपी सिंघल को सर्च कमेटी की रिपोर्ट और उनकी काबिलियत के आधार पर नियुक्ति दी गई है।  डॉक्टर सिंघल का अब तक का कार्यकाल बेदाग़ और ट्रेक रिकॉर्ड अच्छा रहा है। ऐसे में उनके नाम को लेकर विवाद पनपाने का कोई मतलब नहीं है। गौरतलब है कि प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता प्रताप सिंह खाचरियावास ने सिंघल की नियुक्ति को राजनीतिक बताया था।  खाचरियावास ने आरोप लगाए थे कि सिंघल को योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राजनितिक आधार पर नियुक्ति दी गई है। कांग्रेस प्रवक्ता ने अपनी दलील में कहा था कि यूजीजी के नियमों में प्रोफेसर या पीएचडी होल्डर को ही वीसी बनाया जा सकता है। लेकिन राज्य सरकार ने इन नियमों को दरकिनार करते हुए पहली बार किसी प्राइवेट कॉलेज के लेक्चरर को वीसी बनाया है।