मूल्य आधारित परम्पराओं की पालना नैतिकता हैं : पं. विजय शंकर मेहता
बीकानेर।आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के तत्वावधान में आज “नैतिकता का महत्व” विषय पर वैचारिक अनुष्ठान के तहत प्रबुद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन के मुख्य वक्ता थे पं. विजय शंकर मेहता। आपने ने कहा कि – मूल्य आधारित परम्पराओं की पालना नैतिकता हैं। उन्होने कहा कि गुरू, धर्म व ईष्वर की शक्ति ही सब कुछ करवाती है। उन्होंने कहा कि व्यवसायिक जीवन में श्रम, समाजिक जीवन में पारदर्षिता, पारिवारिक जीवन में पवित्रता एवं व्यक्तिगत जीवन में प्रेम नैतिकता है। नैतिकता एवं आचार्य तुलसी एक दूसरे के पर्याय हैं। उन्होंने हमें धर्म एवं संयम, नैतिकता आदि शब्द महत्वहीन बन जाते हैं। आचार्य तुलसी ने जीवन को गहराई से जीया। उन्होंने नैतिकता की जो परिभाषा दी वह देष काल और परिस्थिति सापेक्ष थी उनमें मूल्य और परम्पराओं का सुन्दर मेल था। आचार्य तुलसी ने जीवन का मंत्र दिया विरोध को विनोद समझें। सदा मुस्कराते रहो यह आचार्य तुलसी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। पंडित जी ने तेरापंथ शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि मैं तेरापंथ को जीवन से जोड़ता हूँ। आचार्य तुलसी ने उसी जीवन तत्व को अणुव्रत के संकल्पों में पुनर्परिभाषित किया। हनुमान चालीसा में जो प्रबंधन के सूत्र विद्यमान हैं वे अणुव्रत आचार संहिता में स्पष्ट तौर पर नजर आते है।
विषय परिवर्तन करते हुए आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के महामंत्री ने कहा कि आचार्य तुलसी तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के हनुमान थे उनकी भक्ति से आज भिक्षु जन जन के केन्द्र है उसी तरह से हनुमान के राम है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने जीवन पर्यन्त नैतिकता की अलख जगायी इसी लिए उनकी महाप्राण भूमी में “नैतिकता का शक्तिपीठ” स्थापित किया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुनि राजकरण जी ने कहा- आचार्य तुलसी ने वर्ण व्यवस्था आधारित ऊँच नीच को अस्वीकार करते हुए समानता का स्वर बुलन्द किया। दूसरों को बड़ा कहने वाला स्वयं बड़ा हो जाता है।
मुनि पीयूष कुमार ने नैतिकता के साथ संयम के अपरिहार्य सम्बन्ध को रेखांकित करते हुए कहा जहाँ रोटी, कपड़ा व मकान मूलभूत आवष्यकता के रूप में देखे जाते हैं वहाँ नैतिकता पनप सकती है मगर जब ये आवष्यकताएं दूसरों से अपने आपको बेहतर दिखाने के लिए प्रयुक्त होने लगती है तब नैतिकता असंभव होने लगती है।
मुनि विनीत कुमार ने कहा- जिस प्रकार लक्ष्मण के विष को दूर करने हनुमान संजीवनी लाए थे उसी प्रकार आचार्य तुलसी मानवता का विष दूर करने अणुव्रत की संजीवनी लाए थे।
कार्यक्रम की शुरूआत मुनि श्रेयांस कुमार ने ’नैतिकता अपनाओ हे’ गीत से की। तेरापंथ महिला मण्डल बीकानेर ने मंगलाचरण किया। पं. विजयषंकर मेहता का स्वागत जैन पताका से समाज क गणमान्य व्यक्तियों ने किया तथा स्मृति चिन्ह, साहित्य भेंट किया गया। आभार ज्ञापन जतनलाल दूगड़ ने किया। कार्यक्रम का संयोजन जैन लूणकरण छाजेड़ ने किया।
महाप्राण गायन प्रतियोगिता के सेमीफाइनल राउण्ड में 60 प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें से टाॅप 10 को चुना गया जिसमें खुषी कठोतिया, मधु गंग, गौरव सामसुखा, प्रियंका छाजेड़, पूजा सारस्वत, अरिहन्त नाहटा, विजय लक्ष्मी नाहटा, कुसुम भन्साली, करन सुखानी, कोमल पुगलिया को चुना गया। फाइनल राउण्ड शाम को अणुव्रत मंच पर, आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान पर  रखा गया है।