भारतीय जीवन मूल्य शहरी आपाधापी से दूर सामाजिक सहकार भावना से समृद्ध हमारे गांवों में मिलेंगे : मंजूलिका
बीकानेर।”भारत  शब्द का अर्थ है – भा  अर्थात प्रकाश और रत -लीन” अर्थात निरंतर ज्ञान के प्रकाश की क्रिया में लीन रहने वाला। हमारा जन्म उस देश की भूमि पर हुआ है जो देश विश्व में ज्ञान के प्रकाश को फैलाने में निरंतर लीन रहा है। लेकिन वर्तमान में देश विकास के नाम पर जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है उससे भारतीय परंपराओं , संस्कृति और जीवन मूल्यों का निरंतर हृास हो रहा है। यदि हमें फिर से विश्व का नेतृत्व करना है तो हमें भारतीय पारम्परिक और सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को यथार्थ रूप में अपने जीवन व्यवहार में उतारना होगा और हमारे ये भारतीय जीवन मूल्य शहरी आपाधापी से दूर सामाजिक सहकार भावना से समृद्ध हमारे गांवों में मिलेंगे।’’ ये उद्बोधन परंपरा चैन्नई की अध्यक्षा विदूषी श्रीमती मंजूलिका ने भारतीय परंपरा एवं लोक-संस्कृति के संरक्षण एवं उन्नयन को समर्पित संस्था परंपरा, बीकानेर -चैन्नई  द्वारा नोखा तहसील के गांव चरकड़ा  में आयोजित भारतीय परम्परा चेतना अभियान कार्यक्रम में ग्रामीण महिला-पुरूषों, युवा समूह एवं किशोर विद्यार्थियों से खचा-खच भरे अटल सेवा केन्द्र सभागार, चरकड़ा में व्यक्त किए। मंजुलिका ने अपनी बात श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश -‘उद्धरेदात्मनात्मानं  अर्थात स्वयं से स्वयं का उद्धार करें से शुरू करते हुए कहा कि  गांव का विकास गांव के लोगों द्वारा ही होना चाहिए। गांव वासी ही  गांव की परंपरा और संस्कृति को संरक्षित एवं पल्लवित करते हुए गांव के विकास की योजना बनाएं और उसमें अपना उत्तरदायित्व निष्ठापूर्वक निर्वहन करें। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे सनातन धर्म में मातृत्व का भाव हमारे वृहत चिंतन का मूलाधार है। इस संबंध में उन्होंने भूमाता और गौ-माता की विचारदृष्टि और सामाजिक स्तर पर स्त्राी के मातृत्व उत्तरदायित्व पर सनातन धर्म का दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए इसके अध्यात्मिक, पारंपरिक और वैज्ञानिक पक्षों को गूढ़ तथ्यों के साथ  प्रकाशित किया , जिसेे सभागार में उपस्थित सभी महानुभावों खूब सराहा।   इसी के साथ मंजुलिका ने अंत:करण की शुचिता और बाह्य शुचिता, तुलसी के रूप में पूरी प्राकृतिक सृष्टि के प्रति नमन, गांवों की अपनी गोचर-भूमि, पारंपरिक वस्तु विनिमय प्रणाली, यज्ञ, तप, जाप , ब्राह्मण प्रज्ञा और भारतीय पारंपरिक एवं सांस्कृतिक चेतना के प्रति संकल्पात्मक जीवन जीने जैसे चिंतनपरक एवं प्रासंगिक विषयों पर मजबूत तथ्यों, सटीक उदाहरणों एवं पारस्परिक संवाद शैली के साथ स्पष्ट रूप से अपने विचार उपस्थित महानुभावों के सम्मुख व्यक्त किए।  कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्था के निदेशक डॉ.श्रीलाल मोहता ने संयोजकीय विषय प्रवर्तन में परंपरा संस्था की  कार्य-गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए भारतीय पारंपरिक चेतना अभियान के प्रति संस्था के उद्देश्यों एवं विचार-दृष्टि से आगंतुकों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य गांव के पारंपरिक जीवन मूल्यों एवं संस्कारों के प्रति अपने चिंतन को परिष्कृत कर गांव में सामूहिक रूप से सात्विक चेतना का वातावरण निर्माण करना है। जिससे भावी पीढ़ी का सही दिशा में मार्गदर्शन किया जा सके।  अध्यक्षीय उद्बोधन में चरकड़ा गांव के सरपंच सवाईसिंह राठौड़ गांव की ओर से आगंतुक अतिथियों का स्वागत करते हुए इस गांव विकास के इस पावन कार्य में अपना हर-संभव योगदान देने एवं गांव में सकारात्मक वातावरण निर्माण करने का आह्वान किया।  कार्यक्रम के जिज्ञासा सत्र में सुरेन्द्रसिंह ने जहां राजनेताओं के कथनी और करनी के भेदपूर्ण कार्य-व्यवहार  गांव एवं देश के विकास में बाधक बताया वहीं शिक्षक भवानी सोलंकी ने भारतीय पारंपरिक चिंतन पर यथार्थ अध्ययन करने की बात रखी। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में गांव के मां नागाणाराय मंदिर में वंदन एवं गौ-माता का पूजन किया गया एवं कार्यक्रम के अंतिम सत्र में परम्परा संस्था की ओर से सवाई सिंह राठौड़ एवं हनुमान रांकावत को स्मृति चिह्न एवं प्रकाशित पुस्तकें प्रदान कर सम्मानित किया गया। इसके पश्चात अतिथियों के कर कमलों से गांव में तुलसी वृंदावन के रूप में तुलसी पौध का रोपण भी किया गया।   कार्यक्रम का प्रारंभ  भगवान श्री गणेश, श्रीकृष्ण और मां शारदे की प्रतिमा के समक्ष दीपप्रज्ज्वलन, माल्यार्पण कर किया गया और बालिका विद्यार्थियों द्वारा मां शारदे की वंदना की मनमोहक प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन शिक्षक हनुमान रांकावत ने किया। इस अवसर पर भवंरसिंह राठौड़, भतमल जी भटड़, ओमप्रकाश बिजारणिया, राजेन्द्र प्रजापत, ग्राम सेवक धीरेन्द्र कुमार सहित गांव के प्रबुद्धजन एवं कार्यकर्ताओं सक्रिय सहभागिता रही।  कार्यक्रम के अंत में विश्वासगीत – मैं तुमकों विश्वास दूं…के साथ आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया गया।