बीकानेर। उत्तर आधुनिकता वस्तुत: एक नव सांस्कृतिक वाद है, जिसे बहुलतावाद से भी समझा जा सकता है। साहित्य में इसके प्रचलन को निजी-जगत (प्राइवेसी) के अंत के साथ ही माना जाता है। यह विचार वरिष्ठ कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने मुक्ति की ओर से आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्यवक्ता रखे।जोशी ने कहा कि इस वाद के कारण साहित्य में अभिजात्यवादी वर्चस्व के अधिनायकवादी तंत्र को सीधी चुनौती मिली है। इस अवसर पर जोशी ने मधु आचार्य  के राजस्थानी के पहले उत्तर आधुनिक उपन्यास का जिक्र करते हुए कहा कि इस उपन्यास के कारण राजस्थानी साहित्य का जिक्र विश्व साहित्य में संभव हुआ है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि उत्तर आधुनिकता विचार या दर्शन की बजाय एक प्रवृत्ति है। मूल रूप से यह विचार पश्चिम की देन है, जिसे बाद में समूचे विश्व ने स्वीकार किया। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार, साहित्यकार मधु आचार्य ने उत्तर आधुनिकतावाद को सरलीकृत करते हुए मसल की बजाय माइंड से जोड़ते हुए कहा कि साहित्य सदैव पाठक आश्रित रहना चाहिए, इस वाद की मूल संवेदना भी पाठक का पाठ है। यह एक ऐसे समय की ओर इंगित की जाने वाली संभावना का नाम है, जहां ईश्वर, धर्म, मानव, विचार और इतिहास का लोप हो जाएगा। इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि साहित्य में आने वाला यह नया वाद निश्चय ही साहित्य के विकास के रास्ते का मील का पत्थर साबित होगा।

 एडवोकेट महेंद्र जैन ने कहा कि पॉपुलर साहित्य का अकादमिक साहित्य की जगह ले लेना भी उत्तर आधुनिकता का एक प्रभाव है, जो समाज पर परिलक्षित हो रहा है। अपने शोध वक्तव्य में डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि साहित्य में वाद समय की विशेषता के परिचायक हैं। शोध की दृष्टि से इस वाद का प्रभाव समकालीन सामाजिक-आर्थिक बदलावों में देखा जा सकता है।  शोध वक्तव्य में डॉ. नमामीशंकर आचार्य ने कहा कि उत्तर आधुनिकता किसी भी आदर्श एवं ज्ञान का आधार मानवता की आधुनिक चेतना को मानता है।  कवि एन. डी. रंगा ने अपने अमेरिका अनुभवों का साझा करते हुए कहा की भारत की तुलना में अमेरिकी साहित्य में पोस्ट-मोर्डिनज्म अधिक मुखर है। साहित्य अनुरागी मनोज श्रीमाली ने प्रारम्भ में एक पाठक के तौर पर साहित्य के वाद और विचार पर अपनी जिज्ञासा रखी। इस अवसर पर कवि चंद्रशेखर जोशी, शिक्षाविद भगवानदास परिहार, खूमराज पंवार, विष्णु शर्मा, मांगीलाल भद्रवाल, मुरलीमनोहर पुरोहित आदि ने भी विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन कवि-पत्रकार हरीश बी.शर्मा ने किया। आभार मुक्ति के अध्यक्ष एडवोकेट  हीरालाल हर्ष ने जताया।