पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन चिंतामणि जैन मंदिर में निकलेगी दुर्लभ प्रतिमाएं, विशेष महोत्सव का होगा आयोजन

बीकानेर । जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति आचार्य तथा राजस्थान सरकार की ओर से विशेष अतिथि का दर्जा प्राप्त श्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी के सान्निध्य में भुजिया बाजार के पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन चिंतामणि जैन मंदिर में 27 नवम्बर से एक दिसम्बर तक विशेष महोत्सव मनाया जाएगा। उत्सव के दौरान 1116 अति प्राचीन प्रतिमाओं का अभिषेक, विशेष पूजा सहित उत्सव होगा। अष्ट धातु की ये प्रतिमाएं 500 से 2025 वर्ष पुरानी है।
चिंतामणि जैन मंदिर प्रन्यास के अध्यक्ष निर्मल धारीवाल ने बताया कि इससे पूर्व 2009 में नवम्बर के अंतिम सप्ताह में इन प्रतिमाओं को अभिषेक, पूजन व दर्शनार्थ निकाला गया तथा विशेष उत्सव मनाया गया था। धारीवाल ने जैन प्रतिमाओं के इस संग्रह में विक्रम संवत् 1022 से 1602 के मध्य की 1116 धातु प्रतिमाएं हैं। सभी प्रतिमाएं लेखांकित है। यह अनमोल धरोहर आषाढ़ सुदि 11 विक्रम संवत् 1639 के शुभ दिन बीकानेर में लाई गई थी।

प्रतिमाओं में स्वर्णधातु की बहुलता

धारीवाल ने बताया कि अकबर के एक सेनापति तुरसमखान ने विक्रम संवत् 1633 में राजस्थान के सिरोही क्षेत्र पर आक्रमण किया एवं उस क्षेत्रा पर, अपना आधिपत्य कायम कर लियां इसी दौरान उन्हें कहीं से सूचना मिली कि जैन धातु प्रतिमाओं में स्वर्णधातु की बहुलता है और इसी कारण ये चमकती है। उस धन-पिपासु ने तुरन्त अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इस क्षेत्र के मंदिरों में स्थापित धातु मूर्तियों को उठा लिया जाए। सारी प्रतिमाएं संग्रहित कर ली गई। प्रतिमाओं को गलाने के लिए फतेहपुर सीकरी ले जाया गया।

विक्रम संवत् 1639 में प्रतिमाओं को चिंतामणि जैन मंदिर तक लाया गया

इस घटना की सूचना जब बीकानेर के धर्मपरायण दीवान कर्मचंदजी बच्छावत को मिली तो उनका हृदय विचलित हो उठा कि इन प्रतिमाओं को किस प्रकार गलने से बचाया जाए। बहुत सोच विचार कर उन्होंने बादशाह अकबर को फतेहपुर सीकरी में बहुमूल्य उपहार भेंट किए, जिससे बादशाह प्रसन्न हो गए। बच्छावत ने 1050 प्रतिमाओं को नहीं गलाने व उसके बदले में उन्हें सौंपने तथा बदले में सोना देने का आग्रह किया। बादशाह ने प्रतिमाएं कर्मचंद बच्छावत को को भेंट करनेके आदेश दे दिए।

उस समय बीकानेर के महाराजा रायिंसह वहीं थे। बादशाह ने महाराजा रायसिंह को बीकानेर तक प्रतिमाओ को सुरक्षित भिजवाने का जिम्मा सौंपा। महाराजा ने जिम्मा बखूबी निभाया । बीकानेर में विक्रम संवत् 1639 को पहुंचने पर जैन समाज के बड़ी संख्या में श्रावक राजमहल गए तथा धूमधाम से प्रतिमाओं को चिंतामणि जैन मंदिर तक लाया गया। मूर्तियों की सुरक्षा के लिए एक भूगर्भ भंडार बनवाया गया इसमें सुरक्षित रखवा दिया गया। तब से अब तक विशिष्ट अवसरों पर ही इन्हें निकाला जाता है, पूजा व अभिषेक के बाद पुनः भू-गर्भ भंडार में रख दिया जाता है।

विक्रम संवत् 2000 में मणिसागर सूरिजी के आगमन पर निकाली गई 

धारीवाल ने अतीत का स्मरण करते हुए बताया कि विक्रम संवत् 1987 मेंं जैनाचार्य कृपाचद्रसूरिजी के बीकानेर चातुर्मास में कार्तिक सुदी 3 को, विक्रम संवत् 1995 में हरि सागर सूरिश्वरजी के बीकानेर आगमन पर भादवा माह में, पुनः संवत विक्रम संवत् 2000 में मणिसागर सूरिजी के आगमन पर निकाली गई। संवत् 2000 के पश्चात संवत् 2019 में व 2033 में आखिरी बार निकाली गई। पुनः विक्रम संवत् 2066 यानि वर्ष 2009 में अब 27 नवम्बर 2017 विक्रम संवत् 2074 में गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी के सान्निध्य में निकाला जा रहा है। वर्ष 2009 में प्रतिमाओं के निकलने पर देश-विदेश के शोधार्थी, लेखक व इलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया के लोग बीकानेर पहुंचे थे। बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। इस बार भी देश के विभिन्न इलाकों से श्रावक-श्राविकाएं बीकानेर पहुंच रहे है।

शोधार्थियों के लिए लेखांकित प्रतिमाएं  है महत्वपूर्ण 

धारीवाल ने बताया कि इतिहास का अध्ययन करने वाले शोधार्थियों के लिए लेखांकित प्रतिमाएं बहुत महत्वपूर्ण है । लेखों का अध्यन करने से उस समय के आचार्यों, उनके गच्छों, श्रावकों के गोत्रों आदि की जानकारी प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि कालक्रम की दृष्टि से 11 वीं सदी की 9 बारहवीं शताब्दी की 10 तेरहवीं शताब्दी की 63 चौदहवीं शताब्दी की 259 पन्द्रहवीं शताब्दी की 436 सोलहवीं शताब्दी की 339 सहित कुल 1116 प्रतिमाएं है। अलग-अलग आकृतियों की इस कलाकृतियों में एक तीर्थंकर बैठी मुद्रामें दो का काउसग्ग मुद्रा में’’ में है ऐसी प्रतिमाओं का निर्माण पिछले 500 वर्ष पूर्व बंद हो चुका है। इन लेखों से उस क्षेत्र के लगभग 55 स्थानों के नामों की जानकारी मिलती है। जिनमें से अब कई नाम परिवर्तित हो चुके है।