गंगाशहर। शिविर जीवन के लिए संजीवनी बूंटी है। इसमें प्राप्त ज्ञान की खुराक व्यक्ति के लिए बहुत उपयोगी होती है, इससे उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। ज्ञानशाला के माध्यम से बालकों में संस्कारों का बीजारोपण किया जाता है, ऐसे में ये प्रशिक्षण शिविर प्रशिक्षकों के साथ-साथ बालकों के लिए भी बहुत उपयोगी है। ये उद्गार शासनश्री मुनिश्री मुनिव्रतजी ने गंगाशहर स्थित तेरापंथ भवन में रविवार को आयोजित त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर के समापन अवसर पर व्यक्त किए।

समापन कार्यक्रम का शुभारम्भ महिला मण्डल द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ। शिविर प्रशिक्षक एवं उपासक निर्मल नौलखा ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है। सफलता प्राप्त करने के लिए राह में सबसे बड़ी बाधा है-अज्ञान। अत: व्यक्ति को अज्ञान से मुक्त होकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। लौकिक ज्ञान का अभाव तो केवल इस जन्म में कष्ट देता है परन्तु सम्यक् ज्ञान का अभाव जन्म-जन्मांतर तक दु:खी बनाए रखता है। अत: प्रमाद छोड़कर सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

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इस अवसर पर प्रशिक्षिकाओं में से प्रेम बोथरा, बुलबुल बुच्चा, सुनीता पुगलिया, श्रीया गुलगुलिया, बबीता नाहटा, कविता चौपड़ा, रूचि छाजेड़, मोनिका संचेती, सुनीता डोसी, मोहनी चौपड़ा व रक्षा बोथरा ने अपने अनुभव साझा किए। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष डॉ. पी.सी. तातेड़ ने सभी प्रशिक्षिकाओं व शिविर प्रशिक्षक निर्मल नौलखा को धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर तेरापंथी सभा के जीवराज सामसुखा, भैंरूदान सेठिया, जतन संचेती, पीयूष लूणिया, तेरापंथ महिला मंडल के सुमन छाजेड़, प्रेम बोथरा, तेरापंथ युवक परिषद के देवेन्द्र डागा, भरत गोलछा, मोहित संचेती, गौरव डागा आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन ज्ञानशाला संयोजक रतन छलाणी ने किया।

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